Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 24

       भाग 24,
कभी दर्द के साथ मुस्कराहट, कभी मुस्कराहट के पीछे दर्द,मिन्नी की ज़िंदगी आगे बढ़ती जा रही थी। सितम्बर का महीना आधा बीत चुका था।थोड़ा मौसम भी अच्छा हो रहा था। मिन्नी को   सब कपड़े तंग हो चुके थे।तीन सूट ही ऐसे बचे थे जो पहने जा सकते थे। सोच ही रही थी अगले महीने की तनख्वाह से तीन चार जोड़ी कपड़े बनवाऊंगी,स्कूल में भी बुरा लगता है।बार बार धोने से कपड़े में वो बात नहीं रहती।  

आज इतवार था,आज कमला भी देर से आयेगी, मिन्नी उठ कर चाय पीकर कपड़ें धोने के लिए मशीन में डाल चुकी थी।वो ड्राइंग रूम की  सफाई कर रही थी,लगभग काम हो ही चुका था ,तभी वीरेंद्र ने जोर से आवाज लगाई थी ।

कहाँ हो मिन्नी?

जी आई।

क्या कर रही थी?

कुछ नहीं आप बतायें, चाय बना दूं। 

हम्म बना दो।

मिन्नी ने उसे चाय देकर कपड़ें निकाल कर सूखा दिए थे। वो सोच रही थी क्या बनाये।दोपहर को हर इतवार राजमां चावल ही बनाती थी।वीरेन को बहुत पसंद थे वैसे तो  रोज ही उसकी पसंद का ही बनता था पर इतवार को राजमां चावल ही बनते थे। मिन्नी पास के स्टोर से ब्रेड और बटर लेकर आई थी,आज उसका मन ढेर सारा बटर लगा कर  ब्रेड खाने का था, पता नहीं क्या था आज ,वरना  जो मिल गया वही खा लिया कोई भी विशेष पसंद नहीं थी उसकी। 
आप उठेंगे क्या अभी,आपके लिए  भी सैंडविच बना दूं ।
नहीं सोने दो एक संडे मिलता है सोने को ढंग से।उस दिन भी तुम सुबह  सुबह खटर पटर शुरू कर देती हो।

ठीक है सो जायें।  जब उठेंगे तो बना दूंगी नाश्ता।

मिन्नी ने नहाकर दो कच्चे ब्रेड पर मक्खन लगाया थाऔर एक प्याला चाय लेकर बरामदे में बैठ गई थी। ये सब खाने में उसे बहुत मजा आ रहा था।
चाय खत्म ही हुई थी कि उसकी सास के साथ एक महिला ने और मुख्य दरवाजे से प्रवेश किया था।।
उसने आगे बढ़ कर अभिवादन किया था  तो माँ ने महिला से परिचय कराया था,बेटी ये बुआ है तुम्हारी।

मिन्नी ने दोबारा हाथ जोड़ दिए थे।

खुश रहो बेटी।

मिन्नी चाय बनाने रसोई मे गई ही थी कि वीरेंद्र भी बाहर आ ग ए थे।
बुआ के  पास ही बैठ ग ए थे।

चाय देकर वो खाने की तैयारी करने लगी थी,तब तक कमला भी आ ग ई थी। बुआ उसे अपने पास बैठने को बुला रही थी।
अभी आई बुआ जी।

उसने राजमां की मात्रा बढ़ा दी थी, फिर उसे लगा कि शायद बुआ राजमां पंसद न करे,ऊसने कमला को भेज कर सामने स्टोर से मटर भी मंगवा लिए थे।
उसनें खाना बना दिया था, पर वो एक चीज नोट कर रही थी कि वीरेंद्र की आँखों में उसके प्रति एक तल्खी सी थी।जो उस के छिपाने की कोशिश से भी नहीं छिप रही थी।

खाना निपटा कर और रसोई ,संभालने के बाद  वो जैसे ही  थोड़ा आराम करने के लिए कमरे की तरफ बढ़ी,वीरेंद्र ने उसे पीछे से आकर जैसे झिझोंड़ दिया था।
यही कपड़े है तुम्हारे पास पहनने को क्यों मेरी बेइज़्ज़ती करवाने पर तुली हो,अभी ये घर शिफ्ट किया तो कितने सूट  दिलवाये थे तुम्हें, और ये कपड़े देखो जो तुमनें पहन रखे हैं तुम ये दिखाना चाहती हो कि मैं तुम्हें पैसे नहीं देता, जबकि तुम्हारी बेटी तक को कपड़े दिलवाये है मैने।

वीरेंद्र प्लीज हाथ छोड़ दो मेरा।

एक झटके से वीरेंद्र ने हाथ छोड़ा था उसका और  वो गिरते गिरते बची थी।माँ को शायद उनकी आवाज़ सुन ग ई थी याकुछ अंदेशा हो गया था,वो तुरंत दस्तक देकर अंदर आ गई थी।   गिरती हुई मिन्नी ने बैड को थाम लिया था।

मिन्नी खाना  खाकर थोड़ा आराम कर लो फिर बाज़ार चलना है, बुआ को भी सूट वगेरह दिलवाना होगा।
आप इनके साथ चली जाना माँ, मेरी तबियत भी ठीक नहीं है।मिन्नी से बोला ही नहीं जा रहा था।

चल अभी तो तुम आराम कर लो अभी तो बुआ भी सो रही है। माँ ने स्थिति को संभालने की कोशिश की थी।

वीरू तूं जरा बाहर  आना।

उसके बाहर जाते ही मिन्नी अपने नसीब को कोसती हुई बहुत बिलखती रही थी। पता नहीं कब वो रोतें रोते सो ग ई थी।

क्यों बहू को धमकाता रहता है हर वक्त। 

बुआ की बाते तो सुन ली थी न आपने,  उन्होंने तो झट कह दिया ,वीरू इतनी सुथरी बहू है पर तूं लते कपड़े नहीं ले कर देता क्या,और या तो नौकरी भी करे है,कै बात?
बेटा तूं अपनी बुआ को तो  जानता ही है  ।पर वो दिल की बुरी नहीं है।

तो माँ इस को भी तो चाहिए अपना ध्यान रखे , गर पैसे की जरूरत हो तो माँग ले मुझ से।

तूं खुद भी थोड़ा ध्यान रखा कर, ऐसी हालत ऊपर से नौकरी, ये भी बेचारी क्या करे,और तेरा स्वभाव, तूं कुछ तो गुस्सैल था कुछ  और होता जा रहा है।अब अंदर न  जाईयो उस को भी सुख की साँस  ले  लेने दे चंद घड़ी। सुबह से लगी हुई है।

   मैं किसी को  कुछ नहीं कहता। मैं सो रहा हूँ, और बरामदे में बिछी चारपाई पर लेट गया था ।
माँ ,ड्रॉइंग रूम में सोफे पर अधलेटी सी कुछ चिन्तित सी थी।

बुआ  गहरी नींद में सो रही थी। माँ की भी आँख लग ग ई थी।लगभग दो घंटे बाद किसी ने घंटी बजाई थी।
  वीरेंद्र ने गेट  पर जाकर देखा तो एक  पच्चीस छब्बीस साल का लड़का और उसी की उम्र की एक लड़की थी।पहनावे से उसकी बीवी ही लग रही थी।
हाँ  किस से मिलना है?

साहब वो अखबार वाली दीदी यहीं रहती हैं।

क्या काम है।

साहब उन्हीं से मिलना है।

मेरी बीवी है वो ।

नमस्ते साहब, दोनों केहाथ जुड़ गये थे।

साहब  मैं यहाँ काम के लिए, कलकत्ता  घर  है मेरा, वहाँ से  भाग करआया हुआ था ,गलत संगत और बेरोजगारी की वजह से नशे करने लग  गया था, सड़कों पर पड़ा रहता था।एक दिन जहाँ दीदी रहती थी उस हास्टल के पास ही गिरा पड़ा था,दीदी ने अपने चौकीदार से कह कर मुझे उठवाया था और उस के पास ही रात को ठहरवाया भी, फिर सुबह सुबह दीदी ने मेरी समस्या पूछी तो मैने सब बता  दिया।दीदी ने मुझे चाय और  खाना दिया, और दो हजार रूपये ये कहकर दिए कि भाई अपने घर जाओ और अपनों के बीच रहकर कुछ काम करो।पर नशा मत करना। साहब दो साल बीत ग ए हैं उन बातों को, मैने नशे को हाथ भी नहीं लगाया। मेरी शादी हो गई है ,ये मेरी पत्नी हैं।हम दोनों मिल कर बंगाल की  कढ़ाई का काम करतेहै।उसी के चलते हमें यहाँ भी आना पड़ता है।दो दिन हो ग ए थे दीदी को ढूंढ ते हुए आज  हास्टल से दीदी की एक सहेली ने उन का पता और नम्बर दिया है।।
मैं बुलाता हूँ तुम्हारी दीदी को।
बरामदे में रखी कुर्सियों पर वे दोनों बैठे थे। माँ भी उठ ग ई  थी।
दरवाजे की आहट से ही मिन्नी की आँख खुल ग ई थी। बाहर कोई मिलने  आया  है तुमसे। 

चुपचाप उठ कर बाहर की तरफ चली ग ई थी।

दीदी नमस्ते।लडके ने उठ कर उसके पैर छूने चाहे थे।
बस बस भाई मैने पहचाना नहीं आपको।

याद करो दीदी एक नशेड़ी आदमी को  सड़क से उठवा करदो साल पहले आपने इक नयी ज़़िदगी दी थी।  
अच्छा अच्छा वो तुम हो। मिन्नी के चेहरे पर संतोष जनक मुस्कराहट आई थी।
जी दीदी , और ये मेरी  पत्नी।
लड़की ने भी उस के पैर छूने चाहे थे।
दीदी उम्र मे आप बेशक हमारे ही बराबर हैं पर इन्होनें आप को बहन का दर्जा दिया है,और वो  भी ऐसी बहन जो किसी की नहीं हो  सकती।

आरे बस भी करो,  मैं चाय बना कर लाती हूँ  तुम्हारे लिए।

रहने दो न दीदी।

दीदी भी कहते हो और चाय भी नहीं पीनी, दीदी के यहाँ पर।

बेटी तूं बैठ मै बनाती हूँ चाय।

नहीं नहीं माँ आप  बैठें मैं बना कर लाती हूँ।

वो चाय और बिस्किट की ट्रे लेकर आ गईं थी।

सबके लिए  चाय बना लाई थी वो।

दीदी ये एक कुरता और एक साड़ी ब्लाउज हमनें अपने हाथ से कढ़ाई कर के बनाया हे आप के लिए।

अरे ये तो कान्ता वर्क है,तु म दोनों तो बहुत अच्छे कारीगर हो भाई।

उसने दो हजार रूपये निकाल कर मिन्नी को दिए थे।

ये क्या  है।

आपने   दिए थे न दीदी मुझे मेरे बुरे वक्त में।

अरे तो क्या हुआ दीदी भी कहते हो और हिसाब भी रखते हो।

उसकी पत्नी ने जबरदस्ती मिन्नी कोदो हजार रूपये पकड़ा दिए थे। 

दीदी हम लोग अभी तभी  तीन  चार दिन आपके शहर में ही हैं गर आप नाप दें तो मै आपको ब्लाऊज भी सिल कर दे दूंगी ।

पर ये सब आपसे लेना मुझे बहुत बुरा लग रहा है भाई।

वो अपने फोन नम्बर मिन्नी को देकर चले ग ए थे। शमिता नाम था उसकी पत्नी का और खुद उसका राहुल। दोनों ही अच्छे घर के थे। 

माँ  मिन्नी को बाजा़र चलने के लिए बोल रही थी।पर उसनें मना कर दिया था।

वीरेंद्र माँ और बुआ को लेकर बाजा़र चला गया था,
बुआ को सूट दिलवा कर जब वो गाड़ी में बैठे तो बुआ बैठने से पहले ही बोली, तुम लोग रूको मैं अभी दस मिनट में आई। 

बुआ की बात काटने का साहंस किसी में भी नहीं था।
माँ गाड़ी में बैठी थी  वीरेंद्र दूर खड़ा सिग्रेट  पी रहा था।
बुआ ने दुकानदार से  कहा था एक सुथरा सा सूट दिखा,  जिसकी भारी सी सलवार बने कै कहवें है रे उस ने?
पटियाला सलवार आन्टी जी।सैल्समैन ने हँसते हुए कहा था।
फिर पटियाला सुट के कुछ डिजाइन देखने के बाद बुआ को एक नीले रंग का मैचिंग सूट पंसद आया था।
आन्टी ये तो एक हजार पचास का है।

तो कै होया, पकड़ा .उरैने।

बुआ  वापिस गाड़ी में आ ग ई थी।

मिन्नी बैठी कुछ लिखने का काम कर रही थी।

संध्या रानी ने सुरमई चूनर औढ लिया था। हल्की हल्की  ठंडी सी हवा बहुत सुहावनी लग रहीथी।

वीरेंद्र की बहू थोड़ी चाय बना दे।

जी बुआ जी। वो रसोई में चली ग ई थी।वीरेंद्र भी रसोई में आ ग ए थे।

दो पापड़ भूनकर देना।

वो बिना कुछ बोँले पापड़ निकाल कर भून रही थी।
उसनें पापड़  सेक कर उसको दे दिए थे।

जब वो चाय लेकर बुआ को देने ग ई तो बुआ ने उसे एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा था।
बहू ये तेरे लिए लाई हूँ।

मेरे लिए क्यों बुआ? 

ये तेरी मुँह दिखाई है बेटी।

ले ले बेटा तेरी बुआ स्पेशल जाकर लाई है।

वो पैकेट लेकर जाने लगी तो बुआ ने कहा था, सुन बहू, पहले इसने खोल के देख, रंग ना पंसद आवे तो बदलवा लिए।

मिन्नी सूट खोल ही रही थी कि एकदम वीरेंद्र के आने से वो थोड़ी असहज हो ग ई थी।
कैसा है बेटी?

जी बहुत अच्छा है बुआ जी।

लेज्या और सिलवा के पहन लियो।

ये क्या था बुआ।

मिन्नी के जाने के बाद वीरेंद्र ने पूछा था।

बेटा तेरी बहू की मुँह दिखाई  है।

आज से पहले तो आपने किसी बहू को कुछ न  दिया।
बहू के गुण देखे जाते हैं बावला मुँह नहीं।इस लड़की में सारे वो गुण है जो किसी घर को बसाने के लिए काफी हों।

तभी मिन्नी आ ग ई थी, उसके हाथ में एक पैकिट था, जिस में एक शाल थीऔर एक लिफाफे में ग्यारह सौ रुपये थे।

बुआ जी ये आपके लिए।

पर बेटा मेरे को तो वीरू सूट दिलवा लाया है,फिर ये क्यों।

ये मेरी तरफ से हैं बुआ, आप प्लीज़ मना मत करो।
पर बेटी इतने पैसे तो मैं नहीं लूंगी।
माँ प्लीज बोलो न आप बुआ को।

ले लो बहनजी बहू इतने प्यार और मान से दे रही है आपको।

पर भाभी ये बहुत ज्यादा हैं।

कुछ ज्यादा नहीं है, बुआ ले लो प्लीज़,
मैं खाना बनाती हूँ।

बहू मैं तो रात को शायद न ही खाऊं, दिन में स्वाद के चलते ज्यादा खाया गया।

मिन्नी रोटी तो मैं भी नहीं खाऊँगी बेटी।

फिर खिचड़ी या दलिया बना दूं माँ, क्यों बुआ जी.
बिल्कुल नहीं बेटा मैं तो बस एक कप दूध लूंगी वो भी थोड़ा टहल कर आऊँगी तब।

मिन्नी यही ठीक रहेगा मैं भी दो बिस्कुट और एक कप दूध ले लूंगी।

तूं अपने लिए और वीरेंद्र के लिए बना ले।

मिन्नी ने सुबह के लिए सब्जी साफ कर के रख दी थी।कपड़े व्यवस्थित करके रख दिए थे।अपनेभी और वीरेंद्र केभी।

माँ और बुआ टहलने चली ग ई थी।

मिन्नी बाहर बरामदे में बैठी थी इंतजार में कि कब खाने के लिए बोलें तो बनाऊँ।

खाना लगादो मिन्नी।वो कहने के लिए बाहर आया तो देखा माँ और बुआ नहीं थी।

माँ कहाँ है?

वो लोग टहलने ग ए हैं।

तो तुम मेरे पास भी तो आकर बैठ सकती थी,या तुम्हें कोई कुछ कहदे तो तुम पन्द्रह दिन के लिए मौन व्रत धारण कर लेती हो।

खाना लगा दूंं।

मैने जो पूछा है उसका जवाब दो।

मेरे मौन व्रत से आपका कोई काम तो नहीं छूटता ना तो फिर क्या दिक्कत है।बिना किसी गलती के कुछ सुनना पड़े तो दुखी तो सब होते हैं।

मतलब तुम्हारी कोई गलती ही नहीं थी, मै ही खामख्वाह,

आप प्लीज शान्त रहें मेरी ही गलती थी।

तभी बुआ और माँ अंदर आती हैं।

मिन्नी  उन दोनों को दूध देकर और वीरेंद्र को खाना  खिलाकर रसोई समेट देती है।

माँ और बुआ का बिस्तर लगाकर वो खुद भी सोने जाती है।वीरेंद्र बुआ और माँ के पास ही बैठा था। लाईट बंद करके वो  जैसे ही लेटती है तभी वीरेंद्र आकर लाईट आन कर देता है।

हाँ तो क्या कह रही थी तुम?
मिन्नी खामोश ही रहती है।
मैने बोला जवाब दो।वो उस को हाथ पकड़ कर उठा देता है।

क्या जवाब दूं,
वीरेंद्र प्लीज़ मत तंग करो प्लीज।

मुझे जवाब चाहिए वीरेंद्र ने उसे कंधों से पकड़ कर झिझोंड़ दिया था।
रूको देती हूँ जवाब तुम्हें,मिन्नी रूआसी सी हो उठी थी।उसने अलमारी से एक पोलीथीन में से चार सूट निकाल कर उसकी तरफ फैंक दिए थे।ये जो कितने सूट कह रहे थे न आप ये वही चार सूट है जो वजन बढ़ जाने के कारण मुझ से नहीं पहने जाते।और रही मेरी बेटी की बात तो उसे आपने एक स्वेटर दिलवाया था जबरदस्ती,उस के जो भी पैसे हो मैं देने को तैयार हूँ।

रही  आप मुझे क्या देते हैं और क्या नहीं देते हैं मेरा ये बोलना तो बहुत ही घटिया लगेगा, पर आप स्वयं याद करके बतायें कि जब से इस घर में आयें है एक महिने के किराये को छोड़कर आपने कब किराया राशन या बिजली बिल के पैसे दिए हैं, मेरी भी तो पन्द्रह सतरह हजार की नौकरी ही तो है तो मैं चौबीस घंटे कैसे अपडेट र ह सकती हूँ।

यानि मैं तुम्हारा दिया खा र हा हूँ।

मैने ऐसा कुछ नहीं कहा, सिर्फ आपकी बात का जवाब दिया है।

मिन्नी ने  सामान वापिस अलमारी में रख दिया था।
कितना खर्च होता है हर महीने मेरे घर पर बताओ मुझे और सुबह से ये  सब बंद।

मिन्नी चुपचाप लाईन बंद करके लेट ग ई थी।नींद की और उसकी दोस्ती तो कभी भी नही थी,पर अब तो ये भी वीरेंद्र की तरह़ बेमुरव्वत हो ग ई थी।
सुबह पाँच  बजे उठते ही उसने ब्रश करके अपने लिए चाय बनाई थी ,चाय पीते पीते ही सब्जी कट ग ई थी।सब्जी बना कर वीरेंद्र के लिए पराठे सैक कर पैक कर दिए थे।उसे आलू मैथी की सब्जी के साथ चटनी और दही की भी जरूरत होती है।मिन्नी ने अपना लंच भी पैक कर लिया था,वो नहाकर तैयार हो ग ई थी, साढे छह बज ग ए थै माँ भी उठ ग ई थी।
माँ चाय बना दूं।
तुम तैयार हो जाओ , मैं बना लूंगी।
मैं तैयार हूँ माँ।
चाय बना कर बूआ और माँ को चाय देकर वो वीरेंद्र के कमरे में ग ई थी,चाय देने। वो उठा हुआ था ,सिग्रेट पी रहा था।

चाय  पी लो।
नींबू पानी बना दो, तबियत ठीक नहीं है।

ये सिग्रेट और शराब तो आपको अपनी तबियत से भी बढ़कर  है।

सुबह सुबह भाषण की बजाय गर नींबू पानी दे दोगी तो मेहरबानी होगी।

मिन्नी ने दो गिलास नींबू पानी बना कर  ले आई थी,एक ईनो का पैकिट भी था।
ये भी ले लें।

वीरेंद्र ने पानी पी लिया था ईनो को देखा भी नहीं था।
मिन्नी ने उसका लंच बाक्स उसके पास ही मेज पर रख दिया था और कपड़े उसके बैड पर रख दिए थे।

मैं छुट्टी कर लूं क्या गर तबीयत ठीक न हो तो।

कोई जरूरत नहीं है।

माँ ने कहा था वे फुलके खुद बना लेंगी।

मिन्नी माँ और बुआ को अभिवादन करके चली ग ई थी। स्कूल वेन का टाईम हो गया था।उससे तेज चला भी नहीं जाता था।
स्कूल पहुंच कर एक पीरियड पढ़ा कर उसने वीरेंद्र को फोन किया था।

कहाँ हो?

घर पर हूँ, अभी निकल रहा हूँ।
क्या बात है।

आपकी तबियत जानने के लिए फोन किया था।
ठीक हूँ, बस निकल रहा हूँ, बुआ और माँ भी निकल चुकी हैं।

     अरे मृणाली मैम,नमस्ते।

नमस्ते  सारिका मैम ,कैसी हैं।

जी बढ़िया मैम वो उस दिन मैने आपको बताया था न वो लखनवी कढ़ाई के कपड़ों के बारे में, उन आन्टी के पास कल ही  नया स्टाक आया है तो आज आप मेरे साथ  चलियेगा।

पर मैम आज तो कैश भी नहीं है इतना मेरे पास।
मैम पहले आप चले तो सही पैसे तो हम  तन्ख्वाह पर भी दे सकते हैं। मेरे घर की बगल में ही उनका घर है।

पर सारिका मैम,
पर वर कुछ नहीं मैम आप चल रही हैं आज मेरे साथ।
स्कूव वेन से आज  मिन्नी सारिका के घर वाले स्टाप पर ही उतरी थी। उनके घर पहुंचते ही उनकी मंमी ने चाय नाश्ता करवाया। फिर बगल  वाले घर में ही वो दोनों कपड़े देखने चली ग ई थी। रेडिमेड कुरते और दुपट्टों की बहुत सुंदर और किफायती रेंज थी।दूसरा ये भी बहुत बढ़िया था कि वो आन्टी सलवारें खुद अपने हाथ से सिलकर और मैच करके देती थी,मिन्नी को उसके पंसद वाले डिजाइन की एक सलवार भी मिल ग ई, बाकी कुरतों के साथ की मैचिंग चार पाँच दिन में सारिका मैडम के हाथ भेज देंगी। मिन्नी आटो लेकर अपने घर पहुंच ग ई थी।
आज आते ही वो थकावट के कारण सो ग ई थी।
शाम ढले जब आँख खुली तो साढे पाँच बज चुके थे।  मिन्नी ने उठकर अपने लिए चाय बनाई थी चाय पी ही रही थी कि बाहर गाड़ी रूकने की आवाज़ आई थी।
इस समय वीरेंद्र।

तभी मुख्य द्वार पर दस्तक से उसने जैसे ही दरवाजा खोला, वीरेंद्र अंदर आ गया था।

वो बिना कुछ बोले  अंदर चला गया था।
तबियत ठीक नहीं है क्या?

हम्म, नींबू पानी बना दो।

किसी डाक्टर को दिखा लेते हैं।

कुछ नहीं ठीक हो जायेगा।
क्रमशः
औरत आदमी और छत
लेखिका , ललिता विम्मी
भिवानी, हरियाणा

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